Sunday, 16 June 2013

सपना.......



मैंने तुम्हे देखा था
मुझ पर झांक
ती हुई
खिड़की से
चुपके चुपके
मैंतो समझ नहीं पाया
तुम्हारी आँखों की 

मूक भाषा..

अगर व्यक्त की होती
प्यार भरी बातों से
या पत्र
लिख कर
अपने कोमल हाथों स‍े
मेरी दुनिया भी  

हो गयी होती
खुबसूरत
जी हुई
फू
लों से
परीयों के देशों का....
------------------------- ड० माखन लाल दास (२१ मई, २०१३)

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